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रुक्मिणी परिणय

अनन्त पई

प्रकाशक : इंडिया बुक हाउस प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3386
आईएसबीएन :81-7508-461-8

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रुक्मिणी परिणय पर आघारित पुस्तक....

Rukmani Parinay A Hindi Book by Anant Pai

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

रुक्मिणी परिणय

भारतीय परम्परा में प्रेम के सबसे बड़े प्रतीक कृष्ण है। जिन स्त्रियों से उन्होंने स्वयं प्रेम किया और विवाह किया उनकी संख्या कम नहीं है। फिर भी केवल रुक्मिणी-परिणय की कथा ही सविस्तार मिलती है। जो वीर है वही स्त्री का हृदय जीतता है इसी का शुध्द उदाहरण कृष्ण और रुक्मिणी की कथा है। इस कथा में कृष्ण तमाम शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वियों की आंखों के सामने से रुक्मिणी को हर ले जाते हैं।

इस प्रेम कथा में रुक्मिणी का प्रेम कृष्ण के प्रेम से किसी तरह कम नहीं। यद्यपि रुक्मिणी लज्जावती स्त्री है फिर भी अपने हृदय का मर्म वही पहले अपने प्रेमी को बताती हैं। महल से भाग चलने की सारी योजना भी उन्हीं की बताई हुई है। इस कथा से यह सिद्ध होता है कि प्राचीन भारत में स्त्री की शक्ति और उसका दर्जा बहुत ऊँचा था।

यह कहानी सैंकड़ों वर्षों से हमारे देश में इतनी प्रचलित है कि आज तक ‘स्वयंवर’ शब्द से तुरंत कृष्ण रुक्मिणी परिणय का ध्यान आता है। फिर भी विचित्र बात यह है कि रूढ़ अर्थों में यह स्वंयवर था ही नहीं।
रुक्मिणी परिणय

विदर्भराज भीष्मक का पुत्र रुक्मी मथुरा से आया और हड़बड़ाता हुआ तीर की तरह घर में घुसा।
महल के सब लोग उसके चारों ओर सिमट आये।
वृंदावन के उस ग्वाले कृष्ण ने कंस का वध कर दिया है !

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